दीवानापन
………………………..दीवानापन
ताः१३/१०/१९९५………………………….प्रदीप ब्रह्मभट्ट
क्या दीवानापन तेरा है ओर क्या तेरी अदा है
हम तुमसे दुर भागे, तुम हमको ही क्यो चाहे
तेरी प्रीत पुरानी लगती है,ये जीद पुरानी लगती है
………………………………………………क्या दीवानापन है
मेरी जान मै मरता हुं ओर हर एक अदा पे तेरी
देखो ऐसी बात बनाते नहीं, अक्सर चाहने वाला
कोइ इसमें कमी तो नहीं,तेरी प्रीत पुरानी लगती है
……………………………………………..क्या दीवानापन है
हम तुमसे प्यार करे कैसे,हमे चाहता है अनजाना
मेरी जानपे मै खेलुंगा,पर तुझको नहीं मै छोडुंगा
तेरी प्रीत तो मैने जानी,तेरी प्रीत पुरानी लगती है
…………………………………………..…क्या दीवानापन है
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