भगवान,ये क्या?
भगवान,ये क्या?
ताः३०/९/२००९ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
जीस धरतीपे प्यार रखा था,आज वो उछल गया
रीस्तेनाते तुट गये,और पैसोका व्यवहार हो गया
………जीस धरतीपे प्यार.
देख रहा था कब से आके, बचपनसे जवानी तक
मिलताथा हरपल प्यारयहां,जो अबकहीं चलागया
मन लगन और मानवताका, ना कहीं संकेत रहा
उछलकुद कर आये जवानी,ना कहीं संस्कार दीखे
सच्चा प्रेम आशीशमे था,जो अब कही भाग चला
………जीस धरतीपे प्यार.
माबापका प्यार और प्रभु कृपा,जीवसे भागी दुर
देखके बच्चोका व्यवहार,अब सपने हो जाते चुर
आंखमें पानी आ जाता,और हो जाते है मजबुर
ना किनारा देखपाते जीवनका,जो आंधीसे भरपुर
भगवान ये क्या हो गया,जग कुकर्मोमें चकचुर
……..जीस धरतीपे प्यार.
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