जलता बदन
जलता बदन
ताः२०/३/१९७२ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
जलता है बदन,अंगारोकी तरहां
महेंका है चमन,फुलवाकी तरहां
ये सदा जलता ही रहे,ये सदा महेंकता ही रहे
तुम्हारा बदन…..जलता है बदन..
हाथ तेरे बदनपे आजाये,शांन्त शीतलसे होजाये
गहेराइ है समुन्दरकी,मेरा प्यार है इतना गहेरा
तु माने हमको अपना,तुमको ही खुदा मै जानु
…..जलता है बदन..
हर सांसमें तु आये,हर धडकनमें भी तु समाये
मै पुकारता रहुंगा हरदम,येहरपळ तुम्हारीकसम
ये ऐसा कोइ खेल नहीं,जो चैन से मील जाये
…..जलता है बदन..
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