जलासांइ जय जयकार
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
. जलासांइ जय जयकार
ता२३/१२/२००६ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
श्रध्धा मेरी जलासांइ में;
ना इसमें कोइ भ्रम,
लेकर माला रटण करु मैं;
सफल हो मानव जन्म.
……….श्रध्धा मेरीजलासांइ में.
जीवकी ज्योत समझ ना पाये;
भटक रहा ये मन,
आनबानके ये चक्करमें;
जीवन रहा है जल.
……….श्रध्धा मेरी जलासांइ में.
मिथ्याजीवन हो रहा है;
ना मनको मीले कोइ चैन.
श्रध्धा रखके मनको मनाले;
जीवको मील जाये आनंद.
…………श्रध्धा मेरी जलासांइ में.
जलारामने ज्योत जलाइ;
रामनामका कीया रटण.
सांइबाबाने प्रेम जगाया;
भक्तिका किया जतन.
…………श्रध्धा मेरी जलासांइ में.
सुखमें राम दुःखमें राम;
कणकणमें है बसे राम,
सुमिरन तेरा सच्चा होतो;
पलपल तेरा होगा काम.
………..श्रध्धा मेरी जलासांइ में.
ना शंका ना ओर कोइ द्विधा;
ना कोइ है मनमें चिंता,
जीवन रामसे मरण रामसे;
रामसे जुटा मेरा तनमन.
……….श्रध्धा मेरी जलासांइ में.
***********************************