अंतरकी अभिलाषा
अंतरकी अभिलाषा
ताः१६-८-२००८ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
मेरे मनमें है,मेरे तनमें है
मेरे जीवनकी हर पलमें है भगवान
लेकर में आया,द्वार तुम्हारे..(२)
भक्तिसे भरा दिल ओर मनका ये विश्वास
…..ओ सर्जनहार तेरी कृपा है अपरंपार
धरती पे आया,ये जीवन पाया…(२)
कृपाथी अपरंपार जीसकी ना है कोइ मिशाल
…..ओ सर्जनहार तेरी कृपा है अपरंपार
दीलमे है आशा दर्शनकी अभिलाषा..(२)
ओ जगतपिता भगवान देदो मुक्ति मुझे करतार
…..ओ सर्जनहार तेरी कृपा है अपरंपार
ना कोइ अपेक्षा ना कोइ लालच…(२)
ये जीवन मागे मुक्ति,करदो आत्माका कल्याण
…..ओ सर्जनहार तेरी कृपा है अपरंपार
परदीप बनु मै,पावन ये जीवन…(२)
ना मागु कुछ ना कोइ आशा ना मोह है मनमे
…..ओ सर्जनहार तेरी कृपा है अपरंपार
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