ना कोइ मेरा
ना कोइ मेरा
ताः२०-११-१९७५ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
ना कोइ है यहॉ पर, ना कोइ होगा वहॉ
जीवनकी हरराह पर,होगे अकेले ही हम
…………………ना कोइ है यहॉ……
है निराले जीवनकी राह पे चलने वाला
नादेखा कोइ किनारा आगे हीआगे भासे
मेरा नाकोइ है ये जमीपे, नाकोइ सहारा
………………….ना कोइ है यहॉ…….
देदो हमेभी प्यारसे जीवनकी दो निशानी
हरदम हसतेगाते रहेंगे अपनेगीत निराले
थे अकेले नथा कोइहमारा नहीदेखी यारी
………………….ना कोइ है यहॉ……..
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