हर कदम पे
……………………………हर कदम पे
ताः१८-६-१९९५ ……………………..प्रदीप ब्रह्मभट्ट
जहां हर कदम पे जान है, जहां हर कदम पे शान है
जहां कीर्तीका अपमान है, वहां हरतरफसे हम आग है
……………………………………………….जहां हर कदम पे
कहां है वो दुश्मन जीसने सोते शेरको आज जगाया है
वहां हम खडे हर द्वार पर, जहां अपने देशकी शान है
……जहां हर कदम पे
जो कर सके तो जान दे, जहां देशका अपमान हो
उठजाये जो खुद हाथतो,उसको जलाके राख कर दे
…….जहां हर कदम पे
बनके हसीन कर तु कुरबान अपनी जान शान पे
जो देशके गद्दार है उसको मीटाके,देशकी आन बन
……………………………………………………जहां हर कदम पे
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