धरती और आकाश
धरती और आकाश
ताः४/१२/१९८५ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
आकाशमें बैठा देखे धरतीपे क्या सब चलता है
धरतीको बनानेवाला आकाशसे क्यु ये देखता है
……….आकाशमे बैठा देखे.
ये क्या चलता है खेल कैसे बनता है ये मेल
कौन कहांसे आ बैठे कब तक राह दिखाता है
……….आकाशमे बैठा देखे.
अपना और पराया देके प्रेमकी ज्योत जलाता है
इन्सानीयतका एककिनारा आके दिखा वो जाताहै
……….आकाशमे बैठा देखे.
श्रध्धा लगन प्रेम मोह की झंझट आके मीलती है
ना इन्सान छुट पाया यहां जो धरतीपे मीलजाताहै
……….आकाशमे बैठा देखे.
इन्सान का एक और है काम वो देखे नभके तारे
सोच रहासे कबसे वो क्यो रातको नभपे वो चमके
……….आकाशमे बैठा देखे.
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