अपनोसे मुलाकात
अपनोसे मुलाकात
ताः२७/२/२०१० प्रदीप ब्रह्मभट्ट
यारोका मै यार हुं,और दुश्मनका मै दोस्त
प्यार है मेरी रगरगमे,ना रखता कोइ लोभ
………यारोका मै यार हुं.
पाया जब मैने बचपन,मीला माबापका प्रेम
देह पाके मानवका मै,खुशीसे रहेता हेमखेम
माया मेरे साथ चले,पर ना रहेता कोइ मोह
मेरे अपने मुझे सबलगे,कोइ नहीं परायापन
…………यारोका मै यार हुं.
लेकर हाथमे पाटीपेन,जहांमीली लीखनेकी देन
महेनत अपने साथ रखके,पाया जीवनमें फल
आयीशान साथअपने,जहां महेनत दीलसेमीली
साथमीला अपनोका जहां,मंझील मेरे साथचली
………यारोका मै यार हुं.
दुःख दर्द तो देहका बंधन,ना मीले उसमे भ्रम
रखकर दिलमें श्रध्धा मै.प्रभु कृपा भी ले पाया
आगइ बहार जीवनमें,जो थी मेरेमनकी मंझील
यारोकी पहेचानमीली,ओरहुइ अपनोसे मुलाकात
……….यारोका मै यार हुं
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