भक्ति रामनामकी
भक्ति रामनामकी
ताः२/५/१९८३ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
राम बीना कुछ ना हीं जगमें
भजीले मनवा अब एकही पलमें
कौन जाने कल क्या होगा जीवनमें
पलका है नहीं अब कोइ भरोसा.
………राम बीना कुछ नाहीं.
ना कोइ तेरा है ना अब कोइ मेरा
साथचले अब संग हमारे नाकोइ
अपने वाले होते ही है सब अपने
आताजाता है जीव अपने करमसे
…….. राम बीना कुछ नाहीं.
ना कोइ संगी है ना कोइ साथी
सबको है अपनी अपनीही कहानी
करते है जो भरते है भी वो
जीव जीवनकी यही है जींदगानी
……..राम बीना कुछ नाहीं.
++++++++++++++++++++++++++++++++++