दीलमें दर्द
दीलमें दर्द
ताः१०/६/२०१० प्रदीप ब्रह्मभट्ट
जीवनकी ये राहो पर,कहीं कभी कोइ मील जाता है
सबके साथ यु चलनेमें,वक्तपे पताभी चल जाता है
………..जीवनकी ये राहो पर.
अपनोका समझके प्यारमीले,खुशी बहोत आ जाती है
दीलको मेरे जब चैन मिले,तब प्यार उभरभी आता है
दीलसे सभीको चाहत है,ओर नालगता कोइ पराया है
अनजान समझके कोइखेले,तब दीलमें दर्द ही होता है
……….जीवनकी ये राहो पर.
समयने मुझको समझा दीया,कौन अपना कौन पराया
मानवताकी महेंक को लेके,समझ रहा सबको सथवारा
आया आज समझ में मेरे,कीसका बसेरा मेरे दीलमे है
मेरे है जो मेरेसाथ ही चलते,ना उससे कोइ बटवारा है
……….जीवनकी ये राहो पर.
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