एक लकीर
एक लकीर
ताः१/७/२०१० प्रदीप ब्रह्मभट्ट
करिश्मा कुदरतका अनोखा,नासमझ कोइ पाया है
प्रेमकी एक लकीर मीलनेपर,जीव जगपे आता है
……….करिश्मा कुदरतका जगमें.
नाता है अवनी पे जीसका,जीव आके देह लेता है
कर्म के गहेरे बंधनको,इन्सान समझके जीता है
एकलकीर श्रध्धाऔरविश्वासकी,भक्तिप्रेम देजाती है
उज्वल महेंक जीवनमे, सृष्टिसे भी मील जाती है
………..करिश्मा कुदरतका जगमें.
ना कोइ अपना या पराया,जन्म मरणका नाता है
कर्मका गहेरा बंधनजगमें,समझ नहीं कोइ पाया है
मिलती है महेंक जीवनमें,जब प्रभुकृपा होजाती है
नजरएक जलासांइकी,जीवको शांन्तिमीलने आतीहै
……….करिश्मा कुदरतका जगमें.
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