आग और इन्सान
आग और इन्सान
ताः११/१/२००९ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
आग लगी सब जल जाता है
दील जलनेसे जीवनहै जलता
प्यार मीलनेसे सबमील जाता है
रुठ जानेसे सबबिखर जाता है
क्या ये कुदरत कर जाती है
…………ना समझे યે इन्सान के कैसे है भगवान.
पलपल जीवनमें गीनता है
सबकुछ साथ है वो समझता
है कुदरतकी एक देन निराली
जब मिलगया है मानवजीवन
जन्म सफल तुम्हे कर जाना है
………….ना समझे યે इन्सान के कैसे है भगवान.
आग जीवनमें जब लगती है
ना जगमें कोइ बुझा पाया है
दिलकी आगमें नाकोइ बच पायाहै
आगमें इन्सान मरही जाता है
जन्म मृत्युमें जीव जल जाता है
…………ना समझे યે इन्सान के कैसे है भगवान
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