इन्सानियत
इन्सानियत
ताः९/४/१९७४ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
पतझडमें जो पलता है,इन्सान वोही बनता है
खुशीयोका दामन नाछोडे,वो इन्सान कैसे होगा
……..पतझडमें जो पलता.
खुशीयोमे जो आये,कैसे वो जीना सीख पाये
इन्सानोसे क्या होगा,कुछ काम नहीं करपाये
………पतझडमें जो पलता.
खुदतो कुछ करपाते नहीं,दुसरोका वोक्या जाने
जगमें आया सही पर,धरमको कुछ ना जाने
………पतझडमें जो पलता.
सुखके वो द्वारसे आये,दुःखसे वो दुर ही भागे
किनारोसे जो डरते है,बीच समंदर क्या जाये
………पतझडमें जो पलता.
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