September 16th 2010

ए आर रहेमान

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                           श्री  ए आर रहेमान

ताः१६/९/२०१०       सप्रेम भेंट     प्रदीप ब्रह्मभट्ट
                     (अल्लाह रक्खा रहेमान)

तेरे ह्युस्टनमे आनेसे रहेमान,हमे संगीतकी हेली मिलती है
       खुल जातेहै खुशीयोंके द्वार,जब प्यारकी महेंफील खिलती है

कलाप्रेमकी हो जातीहै पहेचान,जहां सुरकी सरगम  जुडती है
       मिलता सच्चे दीलोसे प्यार,तब मिलती रहेम भी कुदरतकी
देखके ह्युस्टनमें  रहेमानकासन्मान,खुशीसे आंखे भी भीगती है
       करदे जबकृपा जगतके करतार,उज्वल राहे आमिल जाती है

अल्लाहने रक्खा रहेमानपे भरोसा,दे दीया संगीतको सन्मान
      विश्वविहारी हो चले संगीतके संतान,लीये धजा कलाकी साथ
प्रदीपके दिलको  खुशी मिली इतनी,ना शब्द है  कोइ मेरे पास 
     यादहै हमारी तुमको दिलसे,होतारहे जगमें रहेमानका सन्मान

आकर देना प्यार कलाका हमको,जो दीया है आपको रहेमान
      सच्चा प्यारही हमारा दिलसे,नाही है कोइ ओर हमारे अरमान

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    भारतके संगीतकी शान  श्री ए आर रहेमान यहां ह्युस्टनमें कार्यक्रमके
लीये आये है उसी यादकी एक दोर ये गीतसे मे उसे प्रेमसे दे रहा हुं.
स्वीकार करना.
ली. प्रदीप ब्रह्मभट्ट (ह्युस्टन)