काशी ओर काबा
. काशी ओर काबा
ताः११/१०/२०११ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
श्रध्धा मनमें रहेती है,जहां भक्ति सच्ची होती है
प्यार बाबाका मिलता है,जहां सबुरी साथ रहेती है
. ………….श्रध्धा मनमें रहेती है.
धर्म कर्मकी ना चिंता रहेती,जहां भेदभाव रहेते दुर
प्रेम पाना सच्चे दीलसे,मीले प्रेमभी बाबाका अतुट
ना काशी हो या काबा मनमें,जहां भक्ति हो भरपुर
मील जायेगें बाबा घरमें,नही रहेंगे तुमसे भीवो दुर
. …………. श्रध्धा मनमें रहेती है.
देह मीले जगमें जीवको,मीलते बंधनभी जो अतुट
हिन्दु मुस्लीम एक होते,जहां मीलती बाबाकी धुप
द्रष्टि एक होजाती सबकी,जहां सांइकी होती भक्ति
जन्मभी होता उज्वल,जहां सांइनामनी माला होती
. …………..श्रध्धा मनमें रहेती है.
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