जगतका नाता
जगतका नाता
ताः१/१२/२००९ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
ना हीन्दु हुं मैं,ना मैं हुं मुसलमान
ना पारसी हुं मैं,ना मैं हुं ख्रीस्ती
परम शक्तिकी सृष्टि हुं मैं,मैं कर्मोका बंधन
……… ना हीन्दु हुं मैं.
जगमै आके चलता हरपल,ना मंझीलका किनारा
दिल दुनीयाका येहै बंधन,ना उसमेंकोइ है स्पंदन
जन्ममीला जबआया जगमै,मीला जगतका नाता
पुरण करना है वो बंधन,जो जगमें है मैंने पाया
…….ना हीन्दु हुं मैं.
रिश्तेनाते पाये जगमें,जबतक है देहका ये बंधन
जीव जगतमै नाकोइ नाता,नाकुछ कर वो पाता
कर्मका बंधन देहसे रहेता,ये जगतमें लेके आता
कृपाप्रभुकी आशीशसंतकी,ना जीवजगमें देहपाता
……..ना हीन्दु हुं मैं.
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