द्रष्टिकी पहेचान
द्रष्टीकी पहेचान
ताः१३/१२/२००९ प्रदीप ब्रह्मभट्ट
आना जाना ना हाथमे मेरे,फीरभी मै पहेलवान
जीवजन्मकी ना पहेचानकोइ,फीरभी मै भगवान
बोलो कैसा हैये ताल,जीसमें ना सरगमकासाथ
अपनी बोली सच्ची मानो,ना उपर है कोइ हाथ
………आना जाना ना हाथमे.
मालामेरे हाथमे रहेती,मुझे मणकेका ना ख्याल
एक हाथमें रखके उसको,प्रसारु मेरा दुसरा हाथ
जो भी निकला मुंहसे,उसको सच्चाही समझाउ
आना मेरा व्यर्थ होगा,जहां मै भीख मागकेजाउ
…………आना जाना ना हाथमे.
जीवनकी ये न्यारी रीत,सोच समझके जहां चले
देखरहा हुं इस धरतीपे,ये मेरी समझमें ना आये
कैसी कीसकी द्रष्टि है,वो तो पडनेसे सब पहेंचाने
मानवताकी सच्चीरीत,जो प्रेम भक्तिमे मील जाये
………. आना जाना ना हाथमे.
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