प्यार कहां है?
प्यार कहां है?
ताः२७/५/२०१० प्रदीप ब्रह्मभट्ट
इस दुनीयामें ढुढ रहे है, इस जगके जास्ती लोग
कहां मिलेगा कैसे मिलेगा,कितनेमे मिलेगा बोल
………..इस दुनीयामें ढुढ रहे है.
कलीयुगकी लकीर देखके,ना चल पाया कोइ छेक
लगजाये जब झापट प्रभुकी, ना रहेता कोइ बोल
प्यार प्यारकी बुम लगाके,उछल खाते सब भोग
हाय बायकी थप्पड खाके,मरजाते यहां कइ लोग
………इस दुनीयामें ढुढ रहे है.
प्यार तो मेरे घरमें है,ओर प्यार आपके घरमें भी
प्यार सबके दीलमें है,ये प्यार जगके कणकणमे है
प्यार पाने काबील हो,तो प्यारमे जींदगी खीलती है
परमात्माका प्यार मीले,जहां प्यारसे भक्ति होती है
……….. इस दुनीयामें ढुढ रहे है.
प्यारका आना प्यारका जाना,येतो है कलीयुगी रीत
मिलता है यहां पैसेमें,जीसमे है ना लंबी कोइ जीद
सच्चा प्यार दीलसे है,जहां आंखे रहे जाती है स्थीर
प्यारका जाना मुश्कील है,जहां दील रहेता है अधीर
………..इस दुनीयामें ढुढ रहे है.
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